Tuesday 21 May 2013

कहानी - बेखौफ


 कहानी                
बेखौफ
                                                         - मधु धवन, चैन्ने    
                                                         
नारियल के गुच्छे से एक सूखा नारियल गिरा तो शीना की बदहवास आँखें एक विवशता का बोझ उठाए उस खोखले नारियल पर टिक गईं. पेड पर बडा गुच्छा सुरक्षित 50 से ज्यादा नारियलों को लेकर हृष्ट पुष्ट लटक रहा था फिर यह मध्यम आकार का नारियल गिरा कैसे...?? किसी ने दैनिक जागरण का एक पन्ना उसकी मेज पर रख दिया था शायद सांत्वना देने के लिए ....अग्नि नक्षत्र की तपिश और उमस में पसीने और आँसुओं से तरबतर शीना गहन सोच में गुम थी. कुछ देर तक बह अपलक शून्य में कुछ सोचती-सी पडी रही फिर एकाएक दहाड मार रो पडी. ..... रोते..रोते बीच-बीच में क्रोध..आक्रोश से चिल्लाती कुत्ते...हरामजादे...बेगेरत...डरपोक...मेरा क्या कसूर ...उनका भी क्या कसूर...रावण से भी बदत्तर कम से कम रावण ने सीता के साथ बलात्कार तो नहीं किया था...अपहरण किया था जरूर... मैं अपनी कोख में पलनेवाले को कैसे मार देती...मेरी रजामंदी से न सही पर थे तो मेरी ही जान मेरा अंश...मेरा खून...
मैं इंजीनियरिंग की छात्रा थी. क्या कर सकी थी. गैंगरेप में मेरा क्या कसूर था....मैं तो सर्वे कर रही थी... कैसे मेरे मुँह पर कपडा रखकर कैंपस से ही तो अगवा कर लिया था. किसी वीरान बस्ती से थोडे ही .. क्या कर सका कोई दिन-दहाडे मुझे जबरन बाँध कर पाँच महीने रखा ..मेरे हाथ-मुँह
  बँधे थे साथ ही बेहोशी की दवा अथवा इंजेक्श्न दिया गया था.                                                                                                                               चीखने चिल्लाने का सवाल ही कहाँ था जोर से टी.वी लगा था.. उसमें कौन शामिल था मैं जान नहीं सकी.
अखबारों में निकलता रहा पर कोई क्या कर सका..
उसकी आँखें सामने पडी आखबार पर गई . एक कॉलम का शीर्षक था –“ महिला उत्पीडन के खिलाफ 17 से प्रदर्शन करेगी एपवा
हमारे संवाददाता , देवरियाः को अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन  ऐवपा की प्रदेश सचिव प्रेमलता पांडेय एडवोकेट ने कहा कि गोरखपुर मंडल में बेखौफ गैंगरेप की घटना हो रही है. अमानवीय महिला उत्पीडन की घटनाओं का सिलसिला जारी है. पुलिस प्रशासन घटनाओं की लीपा पोती करने में लगा है. महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के लिए ऐपवा 17 नवंबर से विरोध प्रदर्शन करेगी. सुश्री पांडेय सोमवार को राघव नगर स्थित जिला पार्टी कार्यालय पर पत्रकार वार्ता में बोल रही थीं. उन्होंने कहा कि 3-4 नवंबर को रात में जिला अस्पताल में पुलिस चौकी के बीच में नवनिर्मित भवन में पति के सामने सामूहिक बलात्कार की घटना घटी. पुलिस को आम जनता ने अपराधी पकड कर दिए भी फिर भी पुलिस की गिरफ्त से कहाँ गए आरोपी , कुछ पता नहीं चल सका. 9 अक्टूबर को पच्चीस वर्षीय युवती की हत्या कर दी गई . जिसका आज तक खुलासा न हो सका. उन्होंने कहा कि तरकुलहां जंगल में एक युवती के साथ सामूहिक दुराचार के बाद गला रेत कर हत्या कर दी गई. आम जनमानस का दिल उस समय दहल उठा जब रात में सोते वक्त दस वर्षीय गूंगी मासूम को दबंग घर से उठाकर ले गए. और सामूहिक दुराचार किया . इसी तरह सिद्धार्थ नगर जिले की ग्राम वरघाट गाँव में दबंगई और मध्ययुगीन हदों को पार कतरे हुए चोरी के आरोप में गरीब 11वर्षाय शहनाज को आँखों में मिर्च डालकर प्रताडित किया गया. जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट आजतक नहीं दर्ज की गई....शीना के आँसू बहते ही गए.क्या होगा कितना सहा नारी ने ... वह भी उस समय क्या-क्या सोचती थी जब सामंतों की कठोरता दरिंदगी की बातें पढती थी .सोचा करती कि यदि मैं होती तो मार-मार कर बुर्था बना देती...वे सब तो अनपढ़ थीं किंतु मैं...इंजीनियरिंग फाइनल इयर की होनहार छात्रा  होकर भी क्या कर पाई....?

,,,,,साला... कहता है हम हरामी हैं...सुंदर और कर्ण का चेहरा आक्रोश से तमतमाया रहता..वे दोनों आकर शीना के सामने खडे हो गए... क्यों रो-रोकर आँखें गँवा रही हैं. अब जो हो चुका है उसे सुधारा तो जा नहीं सकता . इसी में अक्लमंदी है कि तू हमें कर्मठ बना. देख हमारा मोटर गैरज कितना अच्छा चल रहा है. हम ज्यादा पढे-लिखे न होकर भी हर मोटर को ठीक कर लेते हैं.... कौन कहता है कि हम हरामी हैं....रंग-ढंग-चाल-चलन से ही तो व्यक्ति का व्यक्तित्व परखा जाता है. लोगों की हम क्यों परवा करें. हम आत्मनिर्भर हैं....आज फिर उस दूकानदार ने हमें गाली दी और हमने परवाह ही नहीं की.
मुझे बेहद दुख है कि लोग भी नहीं समझते और जो मुहँ आए बोलते रहते हैं. बच्चों को भी नहीं छोडते . तुम्हें स्कूल से यह कहकर निकाल दिया गया कि तुम हरामी की औलाद हो.... उसकी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे. कर्ण ने आगे बढकर उन्हें पौंछते हुए कहा--- तनिक सोचो ,माँ,  तुम्हारे दोनों जुडवां बच्चे लडके हैं. और साहसी तथा समझदार हैं ...अगर यही दो लडकियाँ होती तो क्या दुनिया उन्हें जीने देती..... क्या वे उनका भी वही हश्र न करती जो आपके साथ हुआ है...
शुक्र है तुम दोनों मेरी स्थिति को समझते हो मेरे दुख पर अपनेपन की मलहम लगाते हो लेकिन लोगों की आँखें तुमको हराम की औलाद कहती हैं तो.... मेरे चरित्र पर छींटें उडते हैं.
नहीं, दोनों चिंघाड पडे...लो..ग ..ग...हरामी ...हैं...
अच्छा हुआ हमें पढने का अवसर नहीं मिला. पढ-लिख जाते तो राम नहीं रावण ही बनते....अभी तो कम-से-कम इंसान हैं..
वे दोनों शीना को समझाते कि इस बात को इतने वर्ष बीत गए . हम जवान हो गए . हम तेरे साथ हैं फिर तुम क्यों नहीं भूलती... उन दोनों बेटों की बातें सुन शीना फूट-फूटकर रोने लगी. मैंने सुनी हैं गालियाँ , मैंने सुने हैं कुटिल शब्द, मैं रात-दिन घुट-घुट कर मर रही हूँ . अपना चेहरा आइने में देखने की हिम्मत नहीं है..तुम कहते हो भूलती क्यों नहीं... इन हादसों से क्या होता है तुम्हें मैं नहीं बता सकती.....जले पर लाल मिर्च से भी सौ गुना ज्यादा दर्द....जलन....पीडा...मैंने तुम्हें कैसे पाला है....उफ्..मत पूछो....।
उन आवारा लडकों को कोई कुछ नहीं कहता है. सारा दोष लडकियों पर लगा दिया जाता है. मैं चाहती तो मर जाती किंतु नहीं मैं तुम दोनों को दुनिया में लाना चाहती थी .मेरे माता-पिता तक ने मुझे त्याग दिया. नारी संस्थान सब ..व्यर्थ के ढकोसले .. मैं ऊटी आ गई थी . एक साउड स्टूडियो में इंदू फिल्म के साथ एक इंजीनियर की हैसियत से काम करने लग गई. किंतु तुम दोनों के पैदा होते ही मुझे काम से निकाल दिया गया और मेरे बारे में तरह-तरह की अफवाहें फैला दी गईं.
मैं कहाँ जाती.... कनूर हाईवे पर चाय के छोटे से डाबे पर चाय बनाने लगी. अभी दो माह ही हुए थे कि एक दिन किसी यात्री की कार खराब हो गई तो मैंने ठीक कर दी. जाते वक्त वे सो का नोट थमा गए. चाय दूकान के मालिक ने हेय दृष्टि से देखते हुए पूछा ---क्या तुम वही हो जिसका गैंगरेप हुआ था....?
मैंने कडी नजरों से उसे देखा तो वह मेरे गाल छूने को आगे बढा. मैंने उसे इतना पीटा..इतना पीटा....और कहा अगर तुमने यह बात किसी को बताई तो देख...इतना कहकर मैंने  फिर उसकी धुलाई कर दी..
तुम दोनों इतने छोटे थे कि तुम दोनों को उठाकर इधर-उधर जाना बेहद कठिन था. किसी तरह उसी ढाबे पर काम करती रही. तुम दोनों पलने लगे. शायद यह बात सारे ऊटी में दबी जबान में फैल गई. लोगों का आना-जाना बढ गया . उनकी नजरों में जो था मैं पढ सकती थी. चाय की दूकानवाला खुश नजर आने लगा. उसका बिजनस बढने लगा. रोज के पचास-साठ ग्राहक बढ गए.
  अब लोगों की नीयत जान चुकी थी मैं सदा तुम दोनों को अपनी पीठ पर बाँध कर रखती थी कि कब कौन-सी घडी भागना पड जाए.
          ऊटी में मई-जून के महीने फूलों की विश्व स्तरीय प्रदर्शनी लगती है. कई सैलानियों से सारा तमिलनाडु का यह पहाडी़ इलाका चहक उठता है. चाय की दूकान में अपूर्व सुंदरी की झलक की माँग और स्वादिष्ट चाय डबल जायका लेने लोग जमे रहते. एक दिन शाम के पाँच बजे थे .पाँच बजे दूकान बंद करने का समय होनेवाला था. चार कारें बारी बारी से आकर रुकीं. उनमें से तीस से चालीस साल की उम्र के बीस बाईस आदमी उतरें . उन्हें देखते ही मेंरे मन में कुछ खटका क्योंकि छह बजे तक उस जगह पर गहरी धुंध हो जाती है, कार चलाई ही नहीं जा सकती . इस बात की सूचना नीचे गेट पर ही दे दी जाती है और पाँच बजे के बाद कारें ऊपर नहीं छोडी जाती हैं फिर ये सब क्या.... फिर कोई गैंगरेप....
चायवाले ने शायद मोटी रकम ले ली थी. मुझे पच्चीस कप चाय बनाने का आदेश दिया.... कहते-कहते शीना ने गहरी सांस ली...
मैंने पानी लाने के बहाने बाल्टी उठाई बिस्कुट के चार पैकट उठाए और वहाँ से भागी. कितनी जल्दी नीचे उतरी पिछली ओर से वह मैं ही जानती हूँ . तुम दोनों को कोई खरोंच भी न लगे .वहाँ से गेटमैन भी न देख सके. सब मिले हुए थे और मैं आठ महीनें के दो शिशुओं के साथ पूरी दुनिया में अकेली. मैं... कितना कठिन होता है वह वक्त ..
रात भर जंगल में तुम दोनों को उठाए चलती रही. बहुत थक गई थी लेकिन उनकी कारों से डरती थी. दस आकर घेर लें तो मैं क्या कर सकती हूँ. मेरे पास सरसों के तेल और डिटोल की शीशी थी. जिससे मैं कीडे-मकोडों से तुम्हारी रक्षा करती. वह थोडी देर रुकी. सुबह होते ही मैं छिप-छिपकर जल्दी-जल्दी चलने लगी. इतना थक चुकी थी कि एक कदम उठाने की हिम्मत न थी . हार थक कर तुम दोनों को अपने साथ बाँध कर सो गई इतना सोई कि समय का पता ही नहीं चला. जब तुम दोनों जोर-जोर से रोने लगे तो कुछ लोग कहाँ से आए पता नहीं आकर खडे हो गए. मुझे झिंझोड कर जगाया गया. अपने चारों तरफ भीड देख घबरा गई. तुम दोनों बच्चे रो-रोकर आकाश-पाताल एक कर रहे थे. दोनों को खोला गोद में लिया.
वे मुझे देखते खडे रहे. मैं अपनी सफाई में कहती रही...मैं टयूरिस्ट हूँ. एकाध घंटे के बाद फारेस्ट ऑफिसर की जीप आ गई थी. मैंने अंग्रेजी में पूछा यह कौन-सी जगह है. ?
केलिकट... उसने उत्तर दिया.
उसने मुझे इस तरह चलने का कारण पूछा और हिरासत में ले लिया.
जीप में बिठाकर जब वे हमें ले गए तो मैने प्रभु को लाख-लाख धन्यवाद दिया. मैं भी तो सुरक्षा चाहती थी . जंगल में कहाँ भटकती और कितने दिन....रास्ता बडा उबड-खाबड था. लगभग एक घंटे के बाद फारेस्ट के डाक बंगले पहुँचे. मैंने ऑफिसर से समय माँगा और  कमरे में जाकर पहले तुम दोनों के कपडे बदले . जब दूध पिलाने लगी तो देखा दरवाजा खुला है. बंद करना चाहा तो चिटखनी ही टूटी पाई. मन ने सावधान कर दिया. दूध पिलाया तो तुम दोनों सो गए.
आफिसर को क्या कहूँगी सोचने लगी. काफी मंथन के बाद मैंने कहामैं इंजीनियरिंग कालेज की छात्रा थी एक सहपाठी से प्रेम हो गया . घरवाले हमारे विवाह के पक्ष में नहीं थे. हमने घर छोड दिया और शादी कर ली. शादी के एक साल बाद वह मुझे छोड किसी ओर के साथ विवाह कर सदा के लिए विदेश चला गया है. मेरे ये जुडवां बच्चे हैं. वह टूटी-फूटी अंग्रेजी और मलयालम का सहारा लेकर जो समझा सका वह यह था कि हम कैसे मान लें कि तुम सच कह रही हो...कोई सबूत है कि तुम देश की नागरिक हो. देखने में विदेशी लगती हो. कहीं कोई जासूस तो नहीं..?
मैंने देखा वह इंगलिश पढकर समझ सकता था लेकिन बोल नहीं सकता था. मैंने लिखकर दिया कि मुझे सुरक्षा तथा नौकरी चाहिए. मैं इंजीनियर हूँ. मैं जितने दिन डाक बंगले में रहूँगी उसके पैसे भर दूँगी. मैं बच्चोंवाली हूँ, मेरी मदद करें.
 उन्होने मेरी लिखावट और अंग्रेजी तथा बच्चे देख जान लिया कि भाग सकती नहीं और काम आता है. एक सप्ताह में ही मुझे ऑटोपार्ट बनानेवाली कंपनी में नौकरी तथा रहने को एक कमरा मिल गया. तनख्वाह बहुत थोडी थी किंतु सुरक्षित वातावरण था. मैं किस्मत की मारी थी अतः पैसा-पैसा जोडकर रखती. मैं सदा चुप रहती किसी से ज्यादा बात नहीं करती. सब मेरे रूप-गुण से प्रभावित थे किंतु मैं आत्मग्लानि से भरी थी . फिर भी शाम को बच्चों को टयूशनें भी देने लगी. इस तरह तीन साल बीत गए. तुम्हें स्कूल में भर्ती करवा दिया. जीवन में अनुशासन आने लगा.
एक बार कंपनी में सालाना जलसा चल रहा था. सब कर्मचारी अपनी-अपनी डयूटी में लगे थे. एकाएक किसी की दबी आवाज कान में पडी यह लडकी वही इंजीनियर कॉलेज की  नहीं जो गैंगरेप में जलील हुई थी.....
पता नहीं .किसी ने उत्तर में कहा.
तेरे डायरेक्टर को पता है ....?
पता होगा... मुझे नहीं मालूम
अब तो पब्लिक पॉर्पटी है ...कोई भी सरेआम इस्तेमाल कर सकता है.
मेरे कान खडे हो गए.
परंतु तुम्हें कैसे मालूम...?
इतना खूबसूरत चेहरा भुलाए भूलता है..क्या ? कितने दिन कॉलेज के सूचनापट्ट पर था. अभी तो इसकी उम्र बीस-इक्कीस की होगी..बस...
मेरी रूह काँप उठी . मैं बहाने से घर आ गई. रात भर सोचती रही. कैसे बचूँ इन दरिंदों से.. जमा पैसा सहेजकर रखा, सामान बाँधकर कई विकल्पों में डूबती उतरती रही. किसको कहूँ, किसे अपना समझूँ....बडी दुविधात्मक दहशत में थी. मैंने भागना उचित नहीं समझा. बच्चों को लेकर कोट्टयम् जाने का इरादा बना लिया. कंपनी मैनेजर के नाम अर्जी लिख चौकीदार के हाथ पकडादी . सुबह की पहली गाडी पकडने की इच्छा से रात आठ बजे रेलवे स्टेशन चली गई. जाते वक्त किसी को नहीं बताया.
वहाँ भी कहाँ जाती एक मंदिर में जा बैठी. बच्चे खेलते रहे. रात होते ही स्टेशन पर आ गई. वेटिंग रूम में रात बिताई और फिर  नदीनुमा जलप्रवाह किनारे बने किसी पार्क में जा बैठी. तुम दोनों बच्चे खूब खुश थे.
मैंने राहत की सांस ली. नदी में तुम दोनों को खूब नहलाया और खुद भी अच्छी तरह नहा धोकर तरोताजा हुई. कुछ कपडे खरीदे. केले खिलाए. वहाँ से बस पकडी और स्टेशन के बाहर आ गई. वहाँ कन्याकुमारी जाने के लिए बस खडी थी. मैं उसमें चढ गई. कन्याकुमारी में कमरा लेकर बडी राहत मिली. हम खूब सोए. खाना खाया. हम वहीं कुछ दिनों के लिए टिक गए. कोई न था. मैं तुम दोनों को पढाने लगी . शाम को आरती में जाने लगी. पैसा मेरे साथ सुरक्षित ही था. वहाँ शिमोगा से कोई स्कूल अध्ययन भ्रमण पर आया था. उनके साथ वहाँ चहल-पहल बनी रही. उस स्कूल की प्रिंसीपल से दोस्ती कर ली थी . उस रात उसे अपनी सारी दास्ता सुना दी और मदद की इच्छा प्रकट की तो उन्होंने कन्याकुमारी में बस जाने की सलाह दी.
सप्ताह के बाद केलिकट लौट आई . कंपनी के डायरेक्टर को मिली . उन्होंने केवल इतना कहा कन्याकुमारी में आश्रम के पास मेरा गैरज बंद पडा है उसे चलाओ और वहीं गुमनाम जीवन जियो . तुम अच्छी करीगर हो. यही तुम्हारी नियती है. मैं तुम्हें बहन की तरह मान दूँगा. बहन शब्द सुनकर मैं इतना हँसी कि आँसू बहने लगे.
चलो किसी ने तो बहन कहा....
आपको कैसे पता कि मैं कन्याकुमारी में थी.
कंपनी के कर्मचारी से पता लगते ही तुम पर नजर रखी जा रही थी.
 
     अँत में मैं यहीं बस गई. किंतु यहां के लोगों ने भी हमें स्वीकार नहीं किया था. आठवीं तक आते-आते तुम दोनों को कई तरह से तंग करने लगे और तबतक मैंने तुम दोनों को गैरज में आनेवाली मोटरों के बारे में इतनी ट्रेनिंग दे दी कि आज तुम जितने अमीर हो....अपनी मेहनत से .
आज भी बलात्कार हो रहे हैं जब किसी से बलात्कार होता है तो उस समय उसके शरीर को नहीं उसकी आत्मा को ऐसा घाव मिलता है जो पल-पल नासूर होता जाता है. वह सुबकने लगी.

  बाहर कोई ग्राहक आ गया था दोनों बाहर आ गए. किसी की कार का टायर पंक्चर था उसे ठीक करते हुए कर्ण सोचने लगा--
मां का क्या दोष.??  क्या लडकी होना दोष है ???माँ की उम्र है ही कितनी .. 31 साल की. जिस समय हम पैदा हुए होंगे , उस वक्त केवल 17-18 की और इतने जोखिम कष्ट ... अगर वह भी हमें पैदा कर अनाथाश्रम में छोड देती तो.... ?
या हरामी समझ कचरे के डिब्बे में डाल देती तो.....?
अकेली नारी ने रात-दिन हर जोखिम को उठाकर हमें इस काबिल बनाया.
हमारे सिर पर माँ का साया है. माँ न होती तो क्या हम इस तरह का जीवन जी सकते. किसी गली के कीडे होते और कुत्ते-सुअरों के साथ बैठे खा रहे होते... फिर भी नारी को शाबाशी देने की बजाय उसका फायदा उठाकर उसे कलंकित करता है समाज.....
हम समाज में ऐसे दरिंदों का अंत कर देंगे जो नारी पर गंदी नजर रखते हैं. 
आक्रोश से उनके नथुने फडकने लगे.

स्वगत

मेरे इस रचना-संसार में आपका स्वगत है